ना जाने इंसान किस ओर बढ़ रहा है,
छोटी-छोटी बातों पर आपस में लड़ रहा है,
जीना तो चाहता है हर पल सुकून से,
लेकिन चंद पैसे के लिए, इंसान पल-पल मर रहा है,
संतुष्टि उसे अब सिर्फ दो वक़्त की रोटी से नहीं,
गाड़ी और बंगला भी, इंसान के लिए कम पड़ रहा है,
हैवानियत की हद पार कर रहा है इंसान,
चंद पैसे के खातिर, भाई से भाई लड़ रहा है!
जीना तो चाहता है हर पल सुकून से,
लेकिन चंद पैसे के लिए, इंसान पल-पल मर रहा है!
गरीबों से अब कोई नाता नहीं रखना चाहता,
आदर सत्कार अब यहाँ कौन किसका कर रहा है,
बाप की दौलत अपने नाम कर इंसान,
घर से बेघर माँ बाप को कर रहा है!
जीना तो चाहता है हर पल सुकून से,
लेकिन चंद पैसे के लिए, इंसान पल-पल मर रहा है!
... Kishor Saklani