Thursday, August 3, 2023

आजादी का मतलब क्या है!

आज़ादी का मतलब क्या है,

हमें तो समझ नहीं आता?


कोई आजादी चाहता पहनावे की,

भूल रहे सब मर्यादा..

ना रोकटोक करे यहाँ कोई..

भाई, चाहे हो पिता माता,


आजादी का मतलब क्या है,

हमें तो समझ नहीं आता?


कानून सिर्फ नाम का है..

ये पैसो पर है बिक जाता,

दोषी बेखौफ घूम रहे..

ग़रीब इंसाफ कहाँ पाता.


आजादी का मतलब क्या है

हमें तो समझ नहीं आता?


अमीर यहाँ जाति के नाम पर

आरक्षण है पाता,

सामन्य जाति का ग़रीब बेचारा

इस आरक्षण में पीस जाता!


आजादी का मतलब क्या है

हमें तो समझ नहीं आता?

Written By- Kishor Saklani.

Sunday, August 28, 2022

"तेरा वक़्त ख़राब है"!

 तू डर मत, तू नहीं, तेरा वक़्त ख़राब हैं

बुझने ना दे, जो तेरे सीने में लगी आग हैं,

होंसला नहीं, कोई बढ़ाएगा तेरा यहाँ 

हर कोई, पर काटने के लिए बेताब है,


तू डर मत, तू नहीं, तेरा वक़्त ख़राब हैं


अकेला ही चलना पड़ेगा तुझे यहाँ ,

पूरा होगा इक दिन, जो देखा तूने ख्वाब हैं,

तुझे बताना होगा दुनियां को, कुछ ऐसा करके ,

तू आम इंसान नहीं, तू ही दुनियां का बादशाह है!


Written By-Kishor Saklani.

Monday, February 28, 2022

रिश्ता!

रिश्ते हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा होते है! और हमारा जन्म होते ही हम बहुत सारे रिश्तों से जुड़ जाते है क्योंकि रिश्तों से ही मिलकर इक परिवार बनता है जैसे.. माता-पिता, भाई-बहन, दादा-दादी, चाचा-चाची और भी बहुत सारे रिश्ते होते है जो हमें और भी लोगों से जोड़ते हैं और जैसे जैसे हम बड़े होते जाते है बहुत सारे दोस्त हमारी ज़िदगी से जुड़ जाते हैं! रिश्तों के बिना हमारी जिंदगी अधूरी सी लगती हैं, चाहे वो हमारा परिवार हो या फिर हमारे दोस्त! रिश्ता इक एहसास होता है, सिर्फ इंसानों से ही नहीं प्रकृति में रहने वाले जीव-जंतुओं से भी हमारे रिश्ते जुड़ जाते हैं, या फिर ये समझ लीजिये की उनसे भी हमें लगाव हो जाता है! रिश्तों के सहारे हमारी जिंदगी का ये सफर आसान हो जाता है! रिश्तों से हमारी जिंदगी रंगीन होती है!

Written By-Kishor Saklani. (KRISH)

Wednesday, February 2, 2022

"कोहरे की चादर"।

मैं लगभग 2 साल से दिल्ली में नौकरी करता हूं। मैं यहाँ किराए के मकान में रह रहा हूं।  मैं हर रोज सुबह ऑफिस के लिए निकल जाता हूं। लेकिन कभी-कभी ऑफिस  निकलने से पहले मैं 10-15 मिनट के लिए छत पर टहलने जरूर जाता हूँ!  बात आज से एक डेढ़ महीने पहले की है उस दिन मैं ऑफिस निकलने से पहले छत पर गया हुआ था। तो मेरी नजर अचानक एक लड़की पर जाकर रुक गई  जिसका घर 2-4 मकान छोड़कर था। वह छत पर बाल बना रही थी और जैसे ही मेरी नजर उस पर पड़ी तो वो भी बस मुझे देख ही रही थी  मुझे देखते ही वो मुस्कुराई और फिर उसने शरमाकर उसने अपनी नजरें झुका ली। उसकी हंसी इतनी प्यारी थी कि मैं उसे कुछ देर तक देखता रहा, फिर बार-बार मेरी नजरों के सामने उसका वो मुस्कुराता चेहरा आने लगा। मानो उसकी मुस्कान ने मुझ पर कोई जादू कर दिया हो । ऑफिस में पुरे दिन मैं उसके ख्यालों में खोया रहता और उस दिन के बाद में उस लड़की को देखने रोज सुबह छत में जाने लगा। उसे देखने की मुझे आदत जो हो चुकी थी। दिल को सुकून मिलता था उसे देखकर।  और वो भी रोज उसी समय छत पर आने लगी शायद उसको भी मेरी आदत हो चुकी थी,  हमारे बीच इक अनकहा रिश्ता बन चुका था, आज 10 से 15 दिन हो गए। मैं रोज उसे देखने छत पर जाता हूँ लेकिन उसे देख नहीं पाता क्योंकि हमारे बीच रोज सुबह एक कोहरे की चादर आ जाती है!  और अब मुझे इंतजार है उस सुबह का। जब वो कोहरे की चादर हटेगी। और मैं फिर उसे रोज की तरह देख सकूंगा।

Written By-Kishor Saklani.

(यह कहानी सिर्फ काल्पनिक है।)

Monday, January 31, 2022

"अब मैं खुद अपने साथ चलूँगा!"

क्यों प्यार किया था तूने मुझसे,

जब मेरा दिल तोडना था,

मैं अकेला खुश था,

क्यों आदत बना डाली अपनी,

जब अकेला ही छोड़ना था

तू जानती है, मैं तुझसे बात किये बगैर नहीं रह पाऊँगा,

लेकिन अब हर बार कि तरह, तुझसे बात करने कि ज़िद मैं भी नहीं करूँगा,

मैं भी अब तुझसे कभी बात नहीं करूँगा,

फिर से अकेले खुश रहने की आदत डालूंगा,

अब मुझे भी किसी के साथ की जरूरत नहीं,

अब मैं खुद अपने साथ चलूँगा,

अब मैं खुद अपने साथ चलूँगा....

Written By- Kishor Saklani (KRISH)

Friday, March 26, 2021

तारों भरी इक रात होती!

 तारों भरी इक रात होती,

और तुम मेरे साथ होती!

हाथो मैं हाथ लिये,

प्यार भरी हमारी बात होती!


पहले तुम थोड़ा सा शर्माती,

फिर धीरे से मेरे करीब आती!

मुझसे नजरें चुरा के,

तुम मेरे सीने से लग जाती!

कितना हसीन वो लम्हा,

कितनी हसीन वो रात होती!


 तारों भरी इक रात होती,

और तुम मेरे साथ होती!


इक दूसरे कि बाहों में,

हम इस कदर खो जाते!

कुछ पल के लिए हम इक हो जाते,

ना होश में रहते हम,

इस दुनिया से बेखबर हो जाते!

कितना हसीन वो अहसास,

कितनी हसीन वो रात होती!


तारों भरी इक रात होती,

और तुम मेरे साथ होती!

Written By-Kishor Saklani(KRISH)


Sunday, March 7, 2021

महफिल दोस्तों की!

महफिल सजी दोस्तों के नाम थी,

बहुत खूबसूरत वो ढलती शाम थी|

हमारी यादों में ही शामिल है अब वह पल,

क्योंकि वह आज नहीं गुजरी हुई कल शाम थी|


बहुत दिन के बाद हम दोस्त मिले थे,

सबके  चेहरे पर एक अलग मुस्कान थी|

एक दोस्त की सगाई हुई है,

तो ये महफिल भी उसी के नाम थी|


 बहुत खुशी थी जब दोस्तों के आने का इंतजार था,

 हम सबके लिए ये बहुत बड़ा उपहार था|

 और भी ऐसे अनमोल पल हमारी जिंदगी में आते रहें,

 जिंदगी भर ऐसे ही दोस्ती हम निभाते रहें|


 न जाने कौन सा मोड़ जिंदगी में किसका आखिरी मोड़ होगा,

 सिर्फ यादें ही उसकी हमारे साथ होंगी वो हमसे बहुत दूर होगा|

 फिर गिनने लगेंगे हम वही दिन,

 उसके साथ में गुजारी हमने जो शाम थी|


महफिल सजी दोस्तों के नाम थी,

बहुत खूबसूरत वो ढलती शाम थी|

Written By-Kishor Saklani(KRISH)

Wednesday, January 27, 2021

हिंसा किसान के नाम पर!

किसान वो नहीं जो लालकिले में तिरंगे का अपमान कर रहा था,

किसान वो है जो उस वक़्त भी खेतों में खून पसीना बहा रहा था!

किसान वो नहीं जो  दिल्ली की सड़को पर बवाल मचा रहा था,

किसान वो है जो उस वक़्त भी कुदाल लेके खेत खलिहान में जा रहा था!

किसान वो नहीं जो  लालकिले में तोड़ फोड़ कर रहा था,

किसान वो है जो उस वक़्त भी खेतों में अनाज उगा रहा था!

Written By-Kishor Saklani (KRISH)


Wednesday, May 13, 2020

गुरु भजन!

मेरा जीवन तूने ही सवांरा,
हर कदम में तू ही था सहारा!
डूबते का तू ही किनारा,
मेरा जीवन तूने ही सवारा!

चलना सीखा था मैंने,
राह तूने दिखाई थी!
बंद आँखे थी मेरी,
ज्ञान से रोशन कराई थी!
ज्ञान दिया तूने मुझको जब से जिंदगी में खुशियाँ भर आई,
तू हैं संसार मै सबसे प्यारा,

मेरा जीवन तूने ही संवारा!.
हर कदम में तू ही था सहारा!

ज्ञान बिना कोई काम ना हो और गुरु  बिना ज्ञान ना हो!
हर सुबह तेरा नाम लू मैं ,चरणों की तेरी पूजा करू,
कण-2 में तू ही विराजे, हर इक दिल में बसते हो!
तूने दीप जलाया जीवन में,
तूने दूर किया अँधियारा !

मेरा जीवन तूने ही संवारा!
हर कदम में तू ही था सहारा!
डूबते का तू ही किनारा,
मेरा जीवन तूने ही सवारा!
Written By-Kishor Saklani

Sunday, May 10, 2020

माँ!

बेटा हूँ  में, बेटे का फर्ज़ निभाउंगा!
फिर भी कभी ना माँ के प्यार का कर्ज चुका पाउँगा!
कितने भी कर लूँ नेकी के करम,
चाहे बदलू सारे में धरम!
मैं तो हमेशा माँ के चरणों कि ही धूल रहूँगा!


बेटा हूँ  में, बेटे का फर्ज़ निभाउंगा!
फिर भी कभी ना माँ के प्यार का कर्ज चुका पाउँगा!

मुझे पेट में पाला था जब,
घर भी संभाला होगा उसने!
कितना कष्ट हुआ होगा,
हमको जन्म दिया जब उसने!
इतना कष्ट माँ ही सह सकती है,
मै नहीं इतना कष्ट सह पाउँगा

बेटा हूँ  में, बेटे का फर्ज़ निभाउंगा!
फिर भी कभी ना माँ के प्यार का कर्ज चुका पाउँगा!

चाहे खुद भूखी रह जाये माँ,
बच्चो को भूखा नहीं रहने देती!
खाना कम हो जाये तो,
मुझे भूख नहीं माँ कह देती!
अपने बच्चो के खातिर
जो भूख, प्यास त्याग देती!
ऐसी माँ कि ममता को में कैसे भुलाउँगा!

बेटा हूँ  में, बेटे का फर्ज़ निभाउंगा!
फिर भी कभी ना माँ के प्यार का कर्ज चुका पाउँगा!
 Written by-Kishor Saklani.