Wednesday, February 13, 2019

(कहानी जो दिल की गहराइयों को छू ले!)

                                       
                 गांव, शहर और नौकरी!

शहर में नौकरी के छह महीने बीत चुके थे, ऐसा लग रहा था की जैसे गांव से आये हुए बरसों बीत गए हो! गांव की बहुत याद आने लगी थी इसीलिये मैंने अपने बॉस से एक महीने की छुट्टी ले ली! मेरे को छुट्टी मिल चुकि थी! मैं मन ही मन बहुत खुश हो रहा था तो मैं गांव जाने की तैयारी करने लगा और अपने लिए कपडे और घर के लिए सामान खरीद कर ले आया और दूसरे ही दिन गांव के लिए निकल गया! गांव जाने की ख़ुशी मेरे चेहरे पर साफ झलक रही थी! और वो समय भी आ ही गया जिसके लिए मेरे को छः महीने का लम्बा इन्तजार करना पड़ा था! मैं अपने गांव में पहुंच चुका था, और मेरे घर के सभी लोग बहुत खुश थे और मेरी माँ की आखों में ख़ुशी के आँसू थे!गांव पहुँचकर बहुत अच्छा लग रहा था! गांव में एक,दो दिन बीतने के बाद गांव में अपने पुराने दोस्तों से मुलाकात होने लगी और फिर क्या था वही पुरानी बातें शुरु हो गई चले गए अपने अड्डे पर जहाँ पर हम लोग पहले बहुत देर तक बैठ जाया करते थे ऐसा लग रहा था जैसे पुराने दिन वापस आ गए हों और में इन दिनों बहुत खुश था! गाँव के लोगों और बच्चों से मिलकर बहुत अच्छा लग रहा था! गांव में धीरे-धीरे दिन बीतते गए! गांव में अब मेरे को एक महीना होने ही वाला था बस दो  दिन की छुट्टी रह गई थी! गांव में अट्ठाइस दिन कब बीत गए पता ही नहीं लगा! मैं अब इन दो दिनों में फिर से अपनी गांव की हर वो जगह घूम लेना चाहता था जिस जगह मैं अपने दोस्तों के साथ ज्यादातर वक्त बिताया करता था !ऐसे मानो जैसे मैं इन दो  दिनों में अपने गांव की सारी यादों को समेट लेना चाहता था!अब में मन ही मन उदास हो रहा था और ऐसा हो भी क्यों ना जिस गांव में पच्चीस साल से रह रहा था भला वहाँ से दूर जाने का मन किसका करेगा ! लेकिन गांव  में  बेरोजगारी और घर की जिम्मेदारी के कारण कमाने के लिए गांव से दूर शहर जाकर नौकरी करना मजबूरी था! मैं यही सोचता था कि काश गांव में रहकर कुछ रोजगार मिल जाता तो में अपने परिवार वालों के साथ घर में रहता पर गांव मैं कमाने का कुछ साधन नहीं था! आखिर दो दिन का समय भी बीत चुका था! आज सुबह मेरे को घर से निकलना था पूरी रात सो न सका करवट बदलता रहा बिस्तर से उठने का मन नहीं हो रहा था लेकिन कब तक बिस्तर पर रहता!जल्दी से बिस्तर से उठा और जल्दी से फ्रेश होकर नहाना धोना कर लिया! मेरे नहाने तक माँ ने नाश्ता तैयार कर रखा था! आज मेरी पसंद का नाश्ता बना था! माँ ने आलू की सब्जी और पूरी बनाई थी! और में नाश्ता करने लगा मेरी माँ की आंखे आंसू से भरी हुई थी लेकिन वो उन्हे रोके रखी थी! मैं भी मन ही मन बहुत हताश था लेकिन मैंने किसी को ये महसूस नहीं होने दिया क्युकी मेरे घर की मेरे से बहुत उम्मीदें थी! मैं नाश्ता करने के बाद जैसे ही उठने लगा तो माँ ने बोला क्या हुआ आज नाश्ता  इतना कम क्यों किया! मैं ये कहते उठ गया की माँ मन नहीं है आज नाश्ता करने का मेरा! माँ ने मेरी पसंद का खाना बनाया था तो माँ ने जल्दी से मेरे खाने का टिफिन पैक कर दिया! और मे साथ मैं घी, माल्टा, नींबू , मूली (गांव के फल और सब्जियाँ ) और मेरी पसंद के पकवान माँ ने मेरे बैग मैं पैक कर दिया!अब घर के सारे लोग इक्क्ठा हो थे और मैं बस निकलने ही वाला था!सब लोगों के चेहरे पर मायूसी साफ़ दिख रही थी और माँ भी अब अपने आँसुओं काबू ना कर सकी! माँ सिसकिया ले रही थी और सिसकियाँ  लेती हुई बोली बेटा आराम से जाना गाड़ी में अपना ध्यान रखना और हाँ वो मैंने तेरे लिए टिफिन रखा हुआ वो खाना भूलना मत खा लेना समय पर! और पहुंचते ही फ़ोन करना ! अब मैं भी अपने आंसुओं पर काबू नहीं कर पा रहा इससे पहले की मेरे आँसू आँखों से बाहर निकलते मैं भी निकल गया नौकरी के लिए गांव से दूर शहर की ओर!
                                                     Written By-Kishor Saklani

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